संधि का शाब्दिक अर्थ है-योग अथवा मेल । अर्थात् दो ध्वनियों या दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को ही संधि कहते हैं।
परिभाषा- जब दो वर्ण पास-पास आते हैं या मिलते हैं तो उनमें विकार उत्पन्न होता है अर्थात्
वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। यह विकार युक्त मेल ही संधि कहलाता है।
कामताप्रसाद गुरु के अनुसार, 'दो निर्दिष्ट अक्षरों के आस-पास आने के कारण उनके मेल से जो विकार होता है, उसे संधि कहते हैं।'
श्री किशोरीदास वाजपेयी के अनुसार, 'जब दो या अधिक वर्ण पास-पास आते हैं तो कभी-कभी उनमें रूपांतर हो जाता है। इसी रूपांतर को संधि कहते हैं।'
संधि-विच्छेद- वर्णों के मेल से उत्पन्न ध्वनि परिवर्तन को ही संधि कहते हैं। परिणामस्वरूप उच्चारण एवं लेखन दोनों ही स्तरों पर अपने मूल रूप से भिन्नता आ जाती है। अतः उन वर्णों/ध्वनियों को पुनः मूल रूप में लाना ही संधि विच्छेद कहलाता है,
जैसे- महा + ईश = महेश
यहाँ (आ + ई) दो वर्णों के मेल से विकार स्वरूप 'ए' ध्वनि उत्पन्न हुई और संधि का जन्म हुआ
संधि विच्छेद के लिए पुनः मूल रूप में लिखना होगा।
संधि युक्त शब्द संधि विच्छेद
जैसे- महेश महा + ईश
मनोबल मनः + बल
संधि के तीन भेद हैं
1.स्वर संधि
2.व्यंजन संधि
3.विसर्ग संधि
(1) स्वर संधि-दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार स्वर संधि कहलाता है।
स्वर संधि के पाँच भेद हैं-
1.दीर्घ स्वर संधि :- दीर्घ संधि में दो समान स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। यदि अ, आ ,इ, ई, उ ,ऊ, के बाद ये ही लघु या दीर्घ स्वर आएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं
उदाहरण :-
अ + अ = आ जल + अभाव = जलाभाव
अ + आ = आ भोजन + आलय = भोजनालय
आ + अ = आ विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
आ + आ = आ महा + आत्मा = महात्मा
इ + इ = ई गिरी + इन्द्र = गिरीन्द्र
ई + इ = ई मही + इन्द्र = महीन्द्र
इ + ई = ई गिरि + ईश = गिरीश
ई + ई = ई रजनी + ईश = रजनीश
उ + उ = ऊ भानु + उदय = भानूदय
उ + ऊ = लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऊ + उ = ऊ वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ। भू + ऊर्जा = भूर्जा
2. गुण संधि
यदि 'अ' या 'आ' के बाद' इ' या 'ई' ,'उ' या 'ऊ', 'ऋ' आएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः ' ए' 'ओ' और 'अर्' हो जाते हैं
जैसे:-
आ+ इ = ए देव + इंद्र = देवेंद्र
अ +ई= ए गण + ईश = गणेश
आ +इ = ए यथा + इष्ट = यथेष्ट
आ + ई = ए रमा + ईश = रमेश
अ+उ = ओ वीर + उचित =वीरोचित
अ+ऊ= ओ। जल + ऊर्मि = जलोर्मि
आ + उ = ओ महा + उत्सव =महोत्सव
आ + ऊ = ओ गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
अ+ ऋ = अर् कण्व + ऋषि = कण्वर्षि
आ+ ऋ =अर् महा + ऋषि = महर्षि
3. वृद्धि संधि
जब 'अ' या 'आ' के बाद 'ए' या 'ऐ' आए तो दोनों मिलकर 'ऐ' तथा 'ओ' या 'औ' हो तो दोनों के स्थान पर 'औ' हो जाता है
जैसे :-
अ + ए = ऐ एक + एक = एकैक
अ+ ऐ = ऐ परम+ ऐश्वर्य= परमैश्वर्य
आ +ए = ऐ सदा + एव= सदैव
आ +ऐ = ऐ महा +ऐश्वर्य = महैश्वर्य
अ+ओ= औ परम + ओज = परमौज
आ+ओ=औ महा + ओजस्वी = महौजस्वी
अ+औ=औ वन+ औषधि = वनौषधि
आ+औ=औ महा औषधि = महौषधि
4. यण संधि
यदि 'इ' या 'ई' ' उ' या 'ऊ' तथा 'ऋ' के बाद कोई भिन्न स्वर आ जाए तो 'इ' 'ई' का 'य्' 'उ' 'ऊ' का 'व्' तथा 'ऋ' का 'र् ' हो जाता है
जैसे :-
इ+ अ = य अति + अधिक = अत्यधिक
ई+आ = या इति + आदि = इत्यादि
इ+आ = या नदी + आगम = नद्यागम
इ+उ = यू अति + उत्तम = अत्युत्तम
इ+ऊ = यु अति। + ऊष्म = अत्यूष्म
इ+ए = ये प्रति + एक = प्रत्येक
उ + अ = व सु + अच्छ = स्वच्छ
उ+आ = वा सु + आगत = स्वागत
उ+ए =वे अनु + ऐषण अन्वेषण
उ+इ = वि अनु + इति। = अन्विति
ऋ + आ = रा पितृ। + आज्ञा = पित्राज्ञा
5. अयादि संधि
यदि 'ए' या 'ऐ' 'ओ' या 'औ' के बाद कोई भिन्न स्वर आ जाए तो 'ए' का 'अय्' 'ऐ' का 'आय्' हो जाता है तथा 'ओ' का 'अव्' और 'औ' का 'आव्' हो जाता है
जैसे :-
ए + अ = अय् ने + अन = नयन
ऐ + अ =आय् नै + अक = नायक
ओ + क =अव् पो + अन = पवन
औ + अ =आव् पौ + अक = पावक
व्यंजन संधि
इस संधि में एक व्यंजन का किसी दूसरे व्यंजन के साथ अथवा स्वर के साथ मेल होने पर जो विकार उत्पन्न होता है उस विकार को व्यंजन संधि कहते हैं
व्यंजन संधि के प्रमुख नियम
1. यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण ( क् ,च् ,ट् ,त् ,प् ) के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण अथवा य र ल व या कोई स्वर आए तो क् च् ट् त् प् के स्थान पर अपने वर्ग का तीसरा वर्ण ( ग् ज् ड् द् ब् ) हो जाता है
जैसे :-
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + गज = दिग्गज
वाक् + दान = वाग्दान
सत् + वामी = सद्वाणी
अच् + अंत = अजंत
अप् + इंधन = अबिंधन
तत् + रूप = तद्रूप
जगत् + आनंद = जगदानंद
शप् + द = शब्द
2. यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण क् च् ट् त् प् के बाद 'न' या 'म' आए तो क् च् ट् त् प् अपने वर्ग के पंचम वर्ण ङ् ञ् ण् न् म् में बदल जाते हैं।
उदाहरण :-
वाक् + मय = वाङ्मय
षट् + मास = षण्मास
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
अप् + मय = अम्मय
3. यदि 'म्' के बाद कोई स्पर्श व्यंजन आए तो 'म्' वर्ण में जुड़ने वाले वर्ण के प्रत्येक वर्ग का पंचम वर्ण या अनुस्वार हो जाता है
उदाहरण:-
अहम् + कार = अहंकार
किम् + चित् = किंचित्
सम् + गम = संगम
सम् + तोष = संतोष
अपवाद
सम् + कृत = संस्कृत
सम् + कृति = संस्कृति
4. यदि मैं के बाद य र ल व श ष स ह में से किसी भी वर्ण का मेल हो तो 'म' के स्थान पर अनुस्वार ही लगेगा
जैसे -
सम् + योग = संयोग
सम् + रचना = संरचना
सम् + वाद = संवाद
सम् + हार = संहार
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + लग्न। = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + सार। = संसार
5. यदि त् या द् के बाद ल आए तो 'त्' 'द्' ल् में बदल जाता है
जैसे - उत् + लास = उल्लास
उद् + लेख = उल्लेख
6. यदि 'त्' 'द्' के बाद 'ज' 'झ' हो तो 'त्' 'द्' ज् में बदल जाएंगे
जैसे - सत् + जन = सज्जन
उद् + झटिका = उज्झटिका
7. यदि त् द् के बाद 'श' हो तो त् द् का च् और श् का छ् हो जाता है
जैसे - उद् + श्वास = उच्छ् वास
उद् + शिष्ट = उच्छिष्ट
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
8. यदि त् द् के बाद 'च' , 'छ' हो तो त् द् का च् हो जाता है
जैसे :- उद् + चारण = उच्चारण
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
9. त् या द् के बाद यदि 'ह' हो तो त् /द् के स्थान पर द् और 'ह' के स्थान पर 'ध' हो जाता है
जैसे :- तद् + हित = तद्धित
उद् + हार = उद्धार
10. जब पहले पद के अंत में स्वर्ग हो और आगे के पद का पहला वर्ण 'छ' हो तो 'छ' के स्थान 'च्छ' हो जाता है
जैसे :- अनु + छेद = अनुच्छेद
परी + छेद =परिच्छेद
आ + छादन = अच्छादन
11. यदि किसी शब्द के अंत में 'अ' या 'आ' को छोड़कर कोई अन्य स्वर आए एवं दूसरे शब्द के आरंभ में 'स' हो तो 'स' के स्थान पर 'ष' हो जाता है
जैसे :- अभी + शेख = अभिषेक
वि + सम = विषम
नि + सिद्ध = निषिद्ध
सु + सुप्ति =सुषुप्ति
12. 'ऋ' 'र' 'ष' के बाद जब कोई स्वर अथवा 'क' वर्गीय या 'प' वर्गीय वर्ण अनुस्वार अथवा 'य' 'व' में से कोई वर्ण आए तो अंत में आने वाला 'न' 'ण' हो जाता है
जैसे :- भर् + अन = भरण
भूष् + अन = भूषण
राम + अयन = रामायण
प्र + मान = प्रमाण
3. विसर्ग संधि
विसर्ग (: )के साथ स्वर या व्यंजन के मेल में जो विकार होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं
यदि किसी शब्द के अंत में विसर्ग ध्वनि आती है तथा उसमें बाद में आने वाले शब्द के स्वर अथवा व्यंजन का मेल होने के कारण जो ध्वनि विकार उत्पन्न होता है वही विसर्ग संधि है
विसर्ग संधि के प्रमुख नियम
1. यदि विसर्ग (: )के पूर्व 'अ ' हो और बाद में 'अ'हो तो दोनों का विकार 'ओ ' हो जाता है
जैसे :- मनः+ विराम =मनोविराम
यश :+अभिलाषा =यशोभिलासा
मनः+ अनुकूल = मनोनुकूल
2. यदि विसर्ग के पहले 'अ 'हो तथा बाद में किसी भी वर्ग का तीसरा चौथ वर्ण अथवा यह य, र ,ल ,व वर्ण आते हैं तो विसर्ग 'ओ ' में बदल जाता है
जैसे - तपः + वन = तपोवन
अधः + गामी = अधोगामी
वयः+ वृद्ध = वयोवृद्ध
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
3. यदि विसर्ग(:) के बाद 'अ' के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर अथवा किसी वर्ग का तृतीय चतुर्थ या पंचम वर्ण या य , र , ल , व हो तो विसर्ग के स्थान में ,र्, हो जाता है
जैसे:- आयुः + वेद = आयुर्वेद
ज्योति ः + मय = ज्योतिर्मय
आशीः + वचन = आशीर्वचन
धनुः + धारी = धनुर्धारी
4. यदि विसर्ग (:) के बाद 'च' या तालव्य 'श' आता है तो विसर्ग (:)' श् ' हो जाता है
जैसे :- पुनः + च = पुनश्च
तपः + चर्या = तपश्चर्या
यशः + शरीर = यशश्शरीर
5. यदि विसर्ग (:) के पहले अ या आ तथा बाद में त या दंत्य 'स' आता है तो विसर्ग (:) ' स् ' हो जाता है
जैसे :- नमः + ते = नमस्ते
मनः+ ताप = मनस्ताप
पुरः + सर = पुरस्सर
6. यदि विसर्ग (: ) के पहले ' इ' या ' उ ' स्वर हो और उसके बाद ' क' 'ख' 'प' 'फ' वर्ण आए तो विसर्ग (:) मूर्धन्य ' ष् ' जाता है
जैसे :- आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पाद = चतुष्पाद
चतुः + पथ = चतुष्पथ
बहिः + कार = बहिष्कार